दिल का क्या करे ??? By Dr Manpreet Singh Salooja

दिल की बीमारी का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। पहले इसे बुढ़ापे की बीमारी माना जाता था लेकिन अब यह कमउम्र के लोगों को भी अपनी चपेट में ले रही है। ऐसे में जरूरी है अपने दिल की सेहत का ख्याल रखना। बेहतर लाइफस्टाइल और सही जानकारी से इस बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है। बीमारी हो ही जाए तो भी सही इलाज और देखभाल से जिंदगी अच्छी कट सकती है।

हमारे दिल को लगातार काम करने के लिए ऑक्सिजन की जरूरत होती है, जो उसे नलिकाओं से आने वाले खून से मिलती है। दिल एक मिनट में करीब 72 बार धड़कता है और इसके लिए उसे करीब 250 मिली खून की जरूरत होती है। जब दिल तक खून पहुंचाने वाली नलिकाओं में फैट जमा हो जाता है तो दिल तक खून की सप्लाई कम हो जाती है। फैट की इसी परत को ब्लॉकेज कहते हैं। आमतौर पर मरीजों को नसों में 80 फीसदी से ज्यादा ब्लॉकेज होने पर ही पता लगता है। बैठे हुए व्यक्ति के दिल को काम करने के लिए 10 फीसदी, चलने पर 20 और दौड़ने पर 30 फीसदी खून की जरूरत होती है। दौड़ने, चलने या बैठने में तकलीफ के आधार पर पता लगाया जा सकता है कि दिल को कितने खून की सप्लाई हो रही है। मसलन, बैठे रहने पर भी दिक्कत हो तो समझना चाहिए कि दिल को 10 फीसदी भी खून नहीं मिल पा रहा।

किसको खतरा ज्यादा

परिवार में दिल की बीमारी की हिस्ट्री होने के अलावा सही लाइफस्टाइल न अपनाने पर भी ब्लॉकेज की आशंका बढ़ जाती है। खानपान ठीक न होना, स्मोकिंग करना, एक्सरसाइज न करना, बेहद बिजी और टेंशन में रहना जैसे फैक्टर बीमारी की आशंका को 15 से 20 फीसदी बढ़ा देते हैं। हालांकि वक्त पर ब्लॉकेज का पता लगने और सही इलाज होने से हार्ट अटैक से बचा जा सकता है।

कैसे पहचानें

छाती के लेफ्ट हिस्से में दर्द या भारीपन हो तो एंजाइना (दिल को पूरा साफ खून न मिल पाने पर सीने में दर्द) की आशंका हो सकती है। यह तकलीफ चलते हुए या काम करते हुए ज्यादा होती है। कभी-कभी छाती से हाथ की ओर भी तकलीफ जा सकती है। कुछ मामलों में सांस फूलना भी एंजाइना का लक्षण हो सकता है।

लक्षण के बाद क्या करें

एंजाइना होने पर डॉक्टरी जांच कराएं। इसके लिए सबसे पहले ईसीजी किया जाता है, पर ईसीजी दिल की सिर्फ उसी वक्त की स्थिति की जानकारी देता है, इसीलिए चलते हुए ईसीजी यानी टीएमटी किया जाता है। जरूरत पड़ने पर ईको काडिर्योग्राम भी किया जाता है, जिसमें दिल के सही साइज, वॉल्व्स की खराबी और दिल की पंपिंग कैपेसिटी आदि के बारे में सही जानकारी मिल जाती है लेकिन इसमें भी कॉरोनरी ब्लॉकेज के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती। सेहतमंद आदमी के दिल की पंपिंग पावर 60 फीसदी होनी चाहिए लेकिन माइनर हार्ट अटैक के बाद यह पावर 55 फीसदी और मेजर हार्ट अटैक के बाद यह सिर्फ 30 फीसदी रह जाती है।

कैथेटर कॉरोनरी एंजियॉग्रफी

इस जांच के लिए मरीज को अस्पताल में दाखिल किया जाता है। इसमें एक मीटर लंबी तार (कैथेटर) को मरीज की जांघ के पास से घुसाकर दिल की ओर धकेला जाता है। इसमें एक छेद से धमनी के अंदर ‘रेडियोएक्टिव डाई’ डाली जाती है और ‘फ्लूरोस्कोपी’ यानी एक्सरे किए जाते हैं। बाकी धमनियों में भी यही प्रॉसेस दोहराया जाता है। नलियों में रुकावट होगी तो डाई पूरी नहीं भर पाएगी। शरीर में कैथेटर घुसाए जाने से अंदरूनी हिस्सों को नुकसान का खतरा रहता है।

सीटी कॉरोनरी एंजियॉग्रफी

इसमें शरीर में कैथेटर डाले बगैर मशीन से नाड़ियों के अंदर के एक्सरे लिए जाते हैं और ब्लॉकेज का पता लगाया जाता है।परन्तु इससे बीमारी का पूर्णतः सही आकलन नही किया जा सकता ।
सटीक एवम सही  आकलन के लिए कैथेटर कोरोनरी एंजियोग्राफी करनी चाहिए ।

थैलियम जांच इस जांच में चार-पांच घंटे का वक्त लग जाता है। इसे आराम और एक्सरसाइज के दौरान दिल को मिल रहे खून के प्रवाह की जांच के लिए किया जाता है। इसके लिए मरीज को दिल की स्पीड बढ़ाने वाली कुछ दवाएं देकर ट्रैडमिल पर चलाया जाता है।

सीरम लिपिड प्रोफाइल

इसमें कई टेस्ट होते हैं, जोकि धमनियों में जमा फैट की मात्रा का पता लगाने के लिए किए जाते हैं। इनके जरिए कॉलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड, एचडीएल और एलडीएल के लेवल का पता लगाया जाता है। दिल के मरीज को हर तीन महीने बाद यह टेस्ट कराना चाहिए।

हार्ट अटैक

हार्ट अटैक के दौरान दिल की मांसपेशियों के एक हिस्से को खून की सप्लाई पूरी तरह से रुक जाती है। इससे दिल की मांसपेशियों को खून व ऑक्सिजन नहीं मिलता और दिल की धड़कन रुक जाती है। माइनर हार्ट अटैक में दिल की मांसपेशियों का 5 से 10 फीसदी हिस्सा प्रभावित होता है, जबकि मेजर हार्ट अटैक में 30-40 फीसदी हिस्सा प्रभावित होता है।

कब होता है

वैसे तो हार्ट अटैक कभी भी हो सकता है लेकिन ज्यादातर सुबह के वक्त, फैटवाला खाना पेट भर खाने पर, अचानक तेज गुस्सा आने, बहुत दुखी होने, भारी सदमे या तनाव की स्थिति में होता है।

ब्लॉकेज की मुख्य वजहें

ब्लॉकेज बनने और उसके बढ़ने की ये वजहें हो सकती हैं :
कॉलेस्ट्रॉल : खून में कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा 160-180एमजी/डीएल और ट्राइग्लिसराइड की मात्रा 100-130एमजी/डीएल सेफ मानी जाती है। हालांकि 130एमजी/डीएल तक कॉलेस्ट्रॉल होना ही बेहतर है। खून में एचडीएल यानी गुड कॉलेस्ट्रॉल 40एमजी/डीएल से ज्यादा होना चाहिए। यह ब्लॉकेज हटाने का काम करता है। एलडीएल यानी बैड कॉलेस्ट्रॉल 70-100एमजी/डीएल से ज्यादा नहीं होना चाहिए। कॉलेस्ट्रॉल ज्यादा हो तो ब्लॉकेज हो सकती है।

हाई बीपी और डायबीटीज

हाई बीपी और डायबीटीज हार्ट अटैक की वजह बन सकते हैं। बीपी अगर 120/80एमजी/डीएल से ज्यादा हो या शुगर फास्टिंग 100 एमजी/डीएल व खाने के बाद 140एमजी/डीएल से ज्यादा हो तो ब्लॉकेज बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है। बीपी कंट्रोल में न हो तो महीने में एक बार जांच जरूर करानी चाहिए। हाई बीपी के मरीजों को नमक कम खाना चाहिए।

मोटापा

मोटापा भी ब्लॉकेज बढ़ा सकता है। बीएमआई 25 से ज्यादा और कमर का माप 34 इंच से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

टेंशन

टेंशन ब्लॉकेज बढ़ने की ज्यादातर वजहों में इजाफा करता है।

स्मोकिंग और शराब

किसी भी रूप में तंबाकू का सेवन (सिगरेट, जर्दा, गुटका, खैनी आदि) दिल के लिए खतरनाक है। इससे दिल की धमनियां चिपचिपी हो जाती हैं और उन पर आसानी से फैट जमा हो जाता है।

एक्सरसाइज की कमी

फिजिकली एक्टिव न होने से दिल की बीमारी की आशंका बढ़ जाती है। दिल को सेहतमंद रखने के लिए रोजाना कम-से-कम 35 मिनट सैर और एक्सरसाइज करें।

फाइबर की कमी

दिल की बीमारी से बचने के लिए फाइबर से भरपूर खाना खाना चाहिए। फलों और सब्जियों में रेशे यानी कि फाइबर होता है, जो आंतों में फैट को कम करता है। खाने में फाइबर और एंटी-ऑक्सिडेंट यानी विटामिन ए, सी, ई के अलावा मैग्नीज, जिंक आदि ज्यादा लेना चाहिए। ये फलों और अंकुरित दालों में पाए जाते हैं।

क्या है इलाज

ब्लॉकेज तीन तरह के हो सकते हैं। अगर ब्लॉकेज करीब 30-40 फीसदी है और मेन आर्टरी में नहीं है तो दवाओं से इलाज करने की कोशिश की जाती है। अगर ब्लॉकेज क्रिटिकल (30-40 फीसदी से ज्यादा) हैं, पर दो-तीन जगह से ज्यादा नहीं हैं तो स्टेंट से इलाज किया जा सकता है। अगर ब्लॉकेज क्रिटिकल हैं और दो-तीन से ज्यादा जगह पर हैं तो बाईपास ही फायदेमंद है।

बाईपास

यह बड़ा ऑपरेशन है। इसमें मरीज के दिल की धड़कन थोड़ी देर के लिए रोककर मशीन से खून की सप्लाई जारी रखी जाती है। ऑपरेशन से मरीज के पैर, छाती या हाथ की नस काटकर ब्लॉकेज वाली नस के स्थान पर इसके जरिए दिल को खून की सप्लाई दी जाती है।आजकल बीटिंग हार्ट बायपास सर्जरी की जाती है ,जिसमें हार्ट की धड़कन को रोका नही जाता। इस विधि से खतरा कम हो जाता है ।

खर्च

डेढ़ से दो लाख तक

टाइम

ऑपरेशन में करीब 3-4 घंटे। 1 हफ्ते तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है।

फायदा

इस ऑपरेशन के बाद आमतौर पर मरीज का दिल 15-20 साल तक ठीक काम करता है।

एंजियोप्लास्टी (स्टेंट लगवाना)

इसमें ब्लॉकेज को एक बैलून के जरिए धक्का देकर खोला जाता है। बैलून को कैथेटर के जरिए पैर या हाथ से शरीर में डालकर दिल तक ले जाते हैं और ब्लॉकेज खोलते हैं। फिर वहां स्टेनलैस स्टील का एक छल्ला (स्टेंट) लगा दिया जाता है, ताकि फिर से रुकावट न हो। शुगर के पेशंट्स में और बड़े ब्लॉकेज में लंबे स्टेंट लगाने पर स्टेंट के जल्दी बंद होने की आशंका होती है।

खर्च

दो से पांच लाख रुपये। जितने स्टेंट लगाए जाने हैं, उसी के मुताबिक खर्च होता है। आजकल स्टेंट की कीमत सरकार द्वारा कम कर के 30-32 हज़ार रुपये कर दी गई है।

टाइम

करीब आधा घंटा।

फायदा

इसमें शरीर को काटने की जरूरत नहीं होती। सिर्फ जांघ में एंजियॉग्रफी की तरह छोटा-सा छेद किया जाता है, लेकिन फिर से ब्लॉकेज होने की आशंका बनी रहती है।

दवाएं

दिल की बीमारी में दवाओं का काम ब्लॉकेज वाली नसों को चौड़ा कर मरीज को आराम दिलाना है। कुछ दवाएं दिल की रफ्तार को धीमा करती हैं, कुछ खून को पतला करती हैं तो कुछ कॉलेस्ट्रॉल कम करती हैं। इन दवाओं में सॉबिर्टेट, बीटा ब्लॉकर, नाइट्रेट्स, इकोस्प्रिन, स्टेटिन आदि शामिल हैं। दवाओं से फौरी राहत जरूर मिलती है लेकिन ये ब्लॉकेज दूर नहीं करतीं।

लाइफस्टाइल में करें बदलाव

लाइफस्टाइल में बदलाव करने और नियमित रूप से सही दवाएं लेते रहने से दिल की बीमारी के 95 फीसदी मामलों में बाईपास या एंजियोप्लास्टी कराने से बचा जा सकता है।

खाने में बदलाव

खाने में तेल के इस्तेमाल से ब्लॉकेज तेजी से बढ़ता है, इसलिए तेल कम-से-कम इस्तेमाल करें। वैसे भी, तेल में अपना कोई स्वाद नहीं होता। खाने में स्वाद मसालों से आता है। इसके अलावा अनाज, फलों और सब्जियों में भी फैट होता है। ये सब खाने से शरीर को 18 फीसदी फैट मिल जाता है, इसलिए अलग से ऑयल की जरूरत नहीं पड़ती।

  • दूध और दूध से बनी चीजें भी लिमिट में खाएं। मीट, चिकन, अंडा, दूध और पनीर आदि चीजें कॉलेस्ट्रॉल का सोर्स होती हैं। जिनका कॉलेस्ट्रॉल पहले ही ज्यादा है, वे दिन में 200 ग्राम से ज्यादा दूध न लें और वह भी डबल टोंड। दूध न पीने पर होनेवाली कैल्शियम की कमी की भरपाई राजमा, मोठ, चना, पत्तेदार सब्जियां, कमल ककड़ी, मेथी आदि से की जा सकती है।
  • ज्यादा-से-ज्यादा फल खाएं। डायबीटीज के मरीज ऐसे फल खाएं, जिनमें मिठास कम हो।

स्ट्रेस मैनेजमेंट

स्ट्रेस दिल की बीमारी के मुख्य कारणों में से है। क्षमता से ज्यादा काम, कमाई से ज्यादा खर्च, जिंदगी में असंतुलन आदि दूर करें। दूसरों से बात करने की कुशलता भी सीखें।

नियमित सैर करें

रोजाना कम-से-कम 35 मिनट टहलना चाहिए। टहलने से दिल की स्पीड बढ़ती है, जिससे दिल की मांसपेशियां मजबूत होती हैं।

एक्सरसाइज

दिल एक मिनट में करीब 70 बार धड़कता है। हालांकि इसकी कैपेसिटी एक मिनट में 200 बार तक धड़कने की है, लेकिन फिजिकल एक्सरसाइज न करने की वजह से यह अपनी कैपेसिटी से बहुत कम धड़कता है। जो लोग एक्सरसाइज नहीं करते, वे दौड़ने, तेज चलने और सीढ़ियां चढ़ने आदि के दौरान फौरन थक जाते हैं। दिल की धमनियों में कोई रुकावट होने या एंजाइना के मरीजों में यह समस्या ज्यादा होती है। दिल के मरीजों को नियमित रूप से एक्सरसाइज करनी चाहिए। इससे दिल को सेहतमंद रहने में मदद मिलती है और एंजाइना रुकता है। एक्सरसाइज से कैलरी खर्च होती हैं और कॉलेस्ट्रॉल कम होता है। इससे ट्राइग्लिसराइड और ब्लड शुगर का लेवल भी कम होता है।

कितनी एक्सरसाइज करें

दिल की बीमारी से बचने और स्टेमिना बढ़ाने के लिए किसी भी सेहतमंद आदमी को रोजाना कम-से-कम आधा घंटा एक्सरसाइज जरूर करनी चाहिए। दिल के मरीजों को भी रेग्युलर एक्सरसाइज करनी चाहिए। एंजाइना दूर करने और धमनियों में रुकावट कम करने में यह बहुत मददगार होती है। जानकारी की कमी से दिल के बहुत-से मरीज एक्सरसाइज छोड़ देते हैं, जिससे बाद में बीमारी बढ़ती है। लेकिन दिल के मरीज एक्सरसाइज करते हुए उसकी स्पीड और टाइम का ध्यान रखें। एक्सरसाइज सही स्पीड से न करने पर एंजाइना हो सकता है। ऐसा होने पर एक्सरसाइज कम कर देनी चाहिए। एक्सरसाइज के दौरान दिल की धड़कन बढ़ जाती है, जिससे दिल की ऑक्सिजन की जरूरत भी बढ़ जाती है। जब तक धमनियां इस बढ़ी हुई मांग को पूरा करती रहती हैं, तब तक एंजाइना नहीं होता। लेकिन जब धमनियां उस मांग को पूरा करने में कामयाब नहीं हो पातीं तो समस्या पैदा होती है। मरीज ‘एक्सरसाइज स्ट्रेस टेस्ट’ यानी टीएमटी कराकर दिल की धड़कन की सेफ स्पीड का पता कर सकते हैं। एक्सरसाइज करते हुए मरीज अपने दिल की धड़कन की स्पीड खुद माप सकता है। वह एक हाथ की दो उंगलियां दूसरे हाथ की कलाई पर हथेली से चार उंगलियों की दूरी पर रख कर नाड़ी की रफ्तार महसूस कर सकता है और 10 सेकंड में जितनी बार नब्ज चले, उसे छह से गुणा करने पर एक मिनट में दिल की धड़कन की स्पीड पता चल जाएगी।

नोट

अगर दिल के मरीज हैं तो कोई भी एक्सरसाइज शुरू करने से पहले हार्ट स्पेशलिस्ट से जरूर सलाह लें और उस पर अमल करें।

हार्ट अटैक होने पर

हार्ट अटैक से ठीक होने के एक हफ्ते बाद टहलना शुरू कर देना चाहिए। सुबह नाश्ते से दोपहर के खाने के बीच और रात के खाने से आधा घंटा पहले घर में ही एक मिनट टहलें। दो-तीन दिन बाद टहलने का समय दो मिनट कर दें। दो-तीन दिन बाद तीन मिनट कर दें। इस तरह जब टहलने का समय पांच मिनट तक पहुंच जाए तो टहलने के लिए बाहर जाएं।

सावधानियां

ध्यान रहे कि खाली पेट ही घूमें। खाना खाने के बाद एक घंटे तक नहीं टहलना चाहिए। चढ़ाई या ढलान पर स्पीड बहुत कम रखनी चाहिए।

दिल की बीमारी और सेक्स

आमतौर पर दिल के मरीज एंजाइना या हार्ट अटैक होने के डर से सेक्स करना छोड़ देते हैं, जबकि सेक्सुअल गतिविधियां तनाव से निजात दिलाती हैं। दिल के मरीजों को सेक्स के दौरान कुछ सावधानियां जरूर बरतनी चाहिए।

पहली – सेक्स के दौरान जहां तक हो सके, शांत रहें और साथी को सक्रिय भूमिका निभाने दें।

दूसरी – जल्दबाजी नहीं करें।

तीसरी – सेक्स से पहले ‘सब-लिंगुअल सॉर्बिट्रेट’ की एक गोली ली जा सकती है। सब-लिंगुअल यानी जीभ के नीचे रखी जानेवाली।

नोट

दिल के मरीज को वायग्रा जैसी दवाएं बिल्कुल नहीं लेनी चाहिए।

वक्त की कमी की वजह से जो लोग एक्सरसाइज नहीं कर पाते, वे इन बातों का ध्यान रखें :

  • बस स्टैंड तक रिक्शा से नहीं, पैदल जाएं।
  • कार ऑफिस से दूर पार्क करें और वहां से पैदल ऑफिस जाएं।
  • लिफ्ट की बजाय सीढ़ियों का इस्तेमाल करें।
  • ऑफिस में किसी साथी को कॉल करने के बजाय उसकी सीट तक चलकर जाएं।
  • चाय-कॉफी मंगाने या फोटोस्टेट/फैक्स आदि कामों के लिए खुद चलकर जाएं।
  • कभी टेंशन तो कभी थकान के बहाने बार-बार चाय-कॉफी न पिएं।
  • ऑफिस में जिम है तो ब्रेक के दौरान या ऑफिस टाइम के बाद रुककर एक्सरसाइज करें।
  • फैमिली फिजिशियन से रेग्युलर चेकअप कराएं। इससे वक्त रहते बीमारी का पता चल सकता है।

छोटा-सा दिल! लेकिन शरीर में सबसे ज्यादा काम करने की जिम्मेदारी इसी छोटे-से दिल की होती है। यह जिंदगी भर धड़कता रहता है और पूरे शरीर के हर हिस्से को खून और ऑक्सिजन पहुंचाता रहता है। जिंदगी भर एक पल के लिए भी रुक नहीं सकता। रुका तो जिंदगी खत्म। इसी दिल के साथ हम कितना अत्याचार करते हैं, इसका अंदाजा उस वक्त बिल्कुल नहीं होता, जब चटपटा और तला-भुना खाना चटखारे लेकर खाते हैं। जानते हुए भी उस वक्त शायद ही ध्यान आता हो कि ऐसा खाना दिल को जिंदगी देने के लिए खून ले जानेवाली धमनियों में फैट को जमा कर ऐसा ब्लॉकेज बना देता है कि खून दिल तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। इसके बाद डॉक्टरों की शरण लेनी पड़ती है।

कौन सा इलाज बेहतर

दिल की बीमारी के इलाज में स्टेंटिंग, बाईपास और दवाएं शामिल हैं। दिल में कुल तीन मुख्य आर्टरीज (दिल से शरीर को साफ खून सप्लाई करनेवाली पाइप) होती हैं। इन्हीं में फैट जमा होने से ब्लॉकेज होती हैं। अगर एक या दो आर्टरी में रुकावट हो तो स्टेंट लगाया जा सकता है, लेकिन अगर सभी आर्टरीज में ब्लॉकेज हो, दो आर्टरीज में सौ फीसदी ब्लॉकेज हो या लेफ्ट मेन आर्टरी बंद हो तो बाईपास कराने को कहा जाता है। 50 साल से कम उम्र के मरीजों को अच्छे स्टेंट लगाने से बाईपास जैसे रिजल्ट मिल सकते हैं। स्टेंट अच्छी क्वॉलिटी का और सही आकार का होना चाहिए। वैसे तो ये दोनों ही विकल्प सही हैं, पर अगर एक को चुनना हो तो बाईपास को स्टेंट से बेहतर कहा जा सकता है। बाईपास सर्जरी के बाद आमतौर पर मरीज 15-20 साल तक ठीक रह सकता है, जबकि स्टेंट लगवाने के छह महीने से लेकर दो साल के बीच फिर से ब्लॉकेज के लक्षण दिखने लगते हैं।

अगर पूरा परहेज किया जाए, शुगर, बीपी आदि को कंट्रोल में रखा जाए, स्मोकिंग व नशे से दूर रहें, कंट्रोल्ड डाइट ली जाए और रेग्युलर एक्सरसाइज की जाए तो स्टेंट भी 12-15 साल तक चल जाता है और इससे ज्यादा भी चल सकता है। छाती की नस (लीमा ग्राफ्ट) से की गई बाईपास सर्जरी से मरीज 20-25 साल तक ठीक रह सकता है। आमतौर पर बाईपास में टांग से नस लेकर ग्राफ्ट लगाया जाता है और 12-15 साल के बाद उनमें धीरे-धीरे ब्लॉकेज होने लगती है। अगर छाती से नस ली जाती है तो वह आमतौर पर ब्लॉकेज नहीं होती या लंबे समय बाद ब्लॉकेज होती है। वैसे, बाईपास में भी उतने ही परहेज की जरूरत होती है, जितनी स्टेंट लगवाने के बाद होती है। स्टेंट लगवाने के बाद कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए। खून को पतला करने की दवाएं रेग्युलर लेनी चाहिए। स्टेंट लगवाने के बाद जब भी कोई सर्जरी या दांत निकलवाया जाए तो स्टेंट डालने वाले डॉक्टर से नई दवाओं के बारे में सलाह जरूर ली जानी चाहिए। स्टेंट लगवाने के बाद अगर दवाएं बंद कर दी जाएं तो काफी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है।

मंत्र

खूब पैदल चलो, स्मोकिंग मत करो और पेट की चर्बी न चढ़ने दो। जो काम करो, डेडिकेशन से करो। इससे खुशी मिलती है, जो दिल की सेहत सुधारती है।

Our Expert

Dr. Manpreet Singh Salooja is Assistant Director in the department of Cardiothoracic & Vascular Surgery at SPS Hospital. He has done M.B.B.S. from SMS Medical College, Jaipur,  M.S.(General Surgery) from S.P. Medical College, Bikaner, Rajasthan, M.Ch. (C.V.T.S.) from L.P.S. Institute of Cardiology, G.S.V.M. Medical College, Kanpur and Diploma Hospital Adimistration and Medical Tourism, Medvarsity Apollo. Plethora of International and National journals were written by him as well gave many presentations on numerous conferences. His objective is to help the patients in solving their Cardiac, thoracic and Vascular problems with a touch of Humanity and Politeness. Great thing is, He is helping poor patients by providing no cost treatments for heart problems with 2 N.G.O’s:

  • HAVE A HEART FOUNDATIONS
  • EK NOOR SEVA KENDER